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प्रेरक कहानियां - पार्ट 94

लालच से प्राणों का संकट


बहुत पुरानी बात है। कंचनपुर के एक धनी व्यापारी के रसोईघर में एक कबूतर ने घोंसला बनाया। एक दिन एक लालची कौआ उधर से निकला। उसने व्यापारी की रसोई में मछली बनते देखा तो उसके मुंह में पानी भर आया। उसने सोचा, मुझे इस रसोईघर में घुसना चाहिए, लेकिन कैसे? तभी उसकी निगाह कबूतर पर पड़ी।

उसने सोचा कि यदि मैं कबूतर से दोस्ती कर लूं तो शायद बात बन जाए। कबूतर जब दाना चुगने बाहर निकला, तो कौआ उसके साथ हो लिया। थोड़ी ही देर में कबूतर ने पीछे मुड़कर देखा तो अपने पीछे कौए को पाया।

उसने पूछा- तुम मेरे पीछे क्यों लगे हो?

कौए ने मीठे स्वर में कहा - तुम मुझे अच्छे लगते हो। इसलिए मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूं।

कबूतर ने कहा - बात तो तुम ठीक कह रहे हो, मगर मेरा और तुम्हारा खाना-पीना अलग-अलग है। मैं बीज खाता हूं और तुम कीड़े। ऐसे में दोस्ती कैसे चल पाएगी? कौए ने चापलूसी करते हुए कहा - कोई बात नहीं, हम इकट्ठे रह लेंगे।

शाम को दोनों पेट भरकर वापस आ गए।

व्यापारी ने कबूतर के साथ कौए को भी देखा तो सोचा कि शायद उसका दोस्त होगा।

एक दिन व्यापारी ने रसोइए से कहा, आज कुछ मेहमान आ रहे हैं। उनके लिए स्वादिष्ट मछलियां बनाना।

कौआ यह सब सुन रहा था। रसोइए ने स्वादिष्ट मछलियां बनाईं। तभी कबूतर कौए से बोला चलो हम भोजन करने बाहर चलते हैं।

मक्कार कौए ने कहा - आज मेरा पेट दर्द कर रहा है, तुम अकेले ही चले जाओ।

कबूतर भोजन की तलाश में बाहर निकल गया। उधर कौआ रसोइए के रसोई से बाहर निकलने का इंतजार कर रहा था। जैसे ही रसोइया बाहर निकला, कौआ फौरन थाली की ओर झपटा और मछली का टुकड़ा मुंह में भरकर घोंसले में जा बैठा।

रसोइए को जब रसोई में खटपट की आवाज सुनाई दी तो वह वापस रसोई की ओर लपका। उसने देखा कौआ घोंसले में बैठा मछली का टुकड़ा मजे से खा रहा है।

रसोइए को बहुत गुस्सा आया और उसने कौए को पकड़ा और उसकी गर्दन पकड़ कर मरोड़ दी। शाम को जब कबूतर दाना चुगकर आया तो उसने कौए का हश्र देखा।

दुष्ट प्रकृति के प्राणी को उसकी दुष्टता का फल जरूर मिलता है। कबूतर से दोस्ती की आड़ में कौआ अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहता था। वह नहीं जानता था कि लालच में पड़ कर प्राणों को संकट में डालने वाले से बड़ा मूर्ख और कोई नहीं होता।

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